Sunday, January 16, 2011

रचना रहस्य !

घनघोर चिंतन भरी रात
जब छोड़ गई नींद भी साथ
उमड़ते-घुमड़ते, बिम्बों के बदल
मानस पटल पर कुछ बने
कविता के सम्बल
और कुछ चित्र कमल-दल
मैं निरंतर
सोचता रहा पल-पल
क्यों न केवल
करूँ चित्र सृजन
पर शब्दों में उलझा मन
सोचता रहा पल-पल
लगा न क्षण भर
कविता बन गई चित्रवत
चित्र बन गए कवितावत
बांध गए दोनों लयबद्ध
भेद मिट गया दोनों का
दोनों बन गए परम-तत्त्व
सृजन तत्त्व का खुला रहस्य॥

- रवीन्द्र नाथ कुशवाहा

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