Tuesday, November 16, 2010

इन्द्रधनुषी सपने !

अवसादों के घने साए में,
जब खो जाती हैं आशाएं,
शाम के सुरमई अंधेरों में,
जब मन देता है सदायें,
तो चन्द्र-किरणों के रथ पर हो सवार,
लिए झिल-मिल तारों की सौगात,
रुपहली-सुनहरी यादों के सिरहाने बैठ,
आँखों के कोरों से बहते टप-टप,
आँसुओं से भीगी चादर हटा कर,
अपनी प्रेम ऊष्मा से आलिंगन कर,
मन में छिपे किसी अतीत की याद में,
अल्हड़ स्मृतियों में चंचलता भर कर,
आकांक्षाओं का संसार सजा जाते हैं,
ये सपने, इन्द्रधनुषी सपने.

धुंधली राहों में जब खो जाते हैं अपने,
तो स्वप्निल नयनों में अश्रुकण झलकाते,
कभी अंतस के गहन अवचेतन में,
आशाओं के दीप जलाते,
मन के उजले आँगन में,
रंग-बिरंगे रंग सजाते...
ये सपने...ये इन्द्रधनुषी सपने.

कुछ मूक प्रश्न, कुछ अनुत्तरित प्रश्न,
बसे अन्तस्तल में खोजते उत्तर,
बंद पलकों में, मौन नयनों के भीतर,
चित्रलिपि की भाषा में शब्द बाँचते,
अनसुलझी पहेलियाँ सुलझाते और...
कभी भविष्यवेत्ता बन कर और भी
रहस्यमय बन जाते...
ये सपने...ये इन्द्रधनुषी सपने.

अंतस के तम को हरते,
कभी हँसाते,कभी रुलाते,
कभी जिज्ञासु मन के कौतूहल पर,
मंद-मंद मुस्काते ...ये सपने.
सत्य-असत्य की सीमारेखा पर,
छोड़ जाते अवाक मन...
ये सपने...ये इन्द्रधनुषी सपने....

- शील निगम

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