Tuesday, November 16, 2010

विद्रोही आँच !


’चाँदनी’ उपनाम से कविता लिखने वाली ज्योत्स्ना का जन्म जनवरी 1967 मे सीतापुर (उ।प्र।) मे हुआ। लखनऊ की रहने वाली ज्योत्स्ना ने हिंदी मे परास्नातक किया है। कविता का शौक मुख्यतया स्वांत-सुखाय रहा। वर्तमान में ज्योत्स्ना गांधीनगर (गुजरात) मे निवास कर रही हैं। प्रस्तुत कविता बढ़ते हुए सामाजिक तापमान की कारक विसंगतियों की तलाश हमारे आसपास करने की कोशिश करती है।


विषमताओं की विवशता,
विभेद से उपजी वैमनस्यता,
कारक हैं
विसंगतियों से विद्रोह का..

विद्रोही आँच से बढता
सामाजिक तापमान,
अंतस को भर देता है,
उमस और घुटन से...

कब, क्या, क्यों और कैसे
जैसे कई प्रश्नों का समाधान,
कागज़-दर-कागज़ होते हुए,
बन्द हो जाता है,
निरुत्तरित फाइलों में...

यदि कभी-कभार
सरकारी योजनाओं के छींटे,
तपते अंतस पर पड़ भी जाएँ
तो, भाप बन कर उड़ जाते हैं,
ऊँची-ऊँची कुर्सियों के हत्थे तक..

ऐसे में,
बढ़ी हुई उमस,
और अधकचरी, अपाच्य योजनाओं
के कारण,
उबकाइयां आती हैं...

समय रहते उपचार न हुआ ,
तो, उल्टियां भी आ सकती हैं,
फदकते हुए आक्रोश की...

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