Monday, November 12, 2012

तो यथावत चलेगी ये दुनिया !

हैरत है
चंद सरफिरे आज भी ये मानते हैं
दुनिया शेषनाग के फन पर नहीं,
टिकी है आस्तिकों और नास्तिकों की संख्या के
संतुलन पर,

बेअसर है ये इनकी घटती-बढती संख्या से,
या पृथ्वी एक स्त्री है,
इसके डगमगाते कदम जमें हैं
उम्मीद की जमीन पर,
उसकी आँखें टिकी हैं
ठीक सामने की दीवार पर
आंसूओं से लिखे उन कंफेशंस पर
जहाँ पल पल पिघलते शब्दों की इबारत
बताती है
यथावत चलेगी ये दुनिया
बस बची रहे लोगों के दिलों में
थोड़ी सी सहिष्णुता,
थोडा सी सहनशक्ति,
थोडा सा प्रेम
थोडा सी मनुष्यता
और थोडा सा ईश्वर ....
 
- अंजू शर्मा

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