Saturday, June 20, 2015

सभी माताओं-बहनों-बेटियों को समर्पित !

१. बेटियाँ !

बेटियाँ पीहर आती हैं
अपनी जड़ों को सींचने के लिए
तलाशने आती हैं भाई की खुशियाँ
वे ढूंढने आती हैं अपना सलोना बचपन
वे रखने आती हैं आँगन में स्नेह का दीपक
बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर
बेटियाँ
ताबीज बांधने आती हैं दरवाजे पर
कि नजर से बचा रहे घर
वे नहाने आती हैं ममता कि निर्झरनी में
देने आती हैं अपने भीतर से
थोडा-थोडा सबको
बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर
बेटियाँ
जब भी लौटती हैं ससुराल
बहुत सारा वहीं छोड़ जाति हैं
तैरती रह जाती हैं
घर भर की नाम आँखों में
उनकी प्यारी सी मुस्कान
तब भी आती हैं वे लुटाने ही आती हैं
अपना वैभव
बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर !

२. बेटियों का नसीब !

बेटी बनकर आई हूँ
माँ-बाप के जीवन में
बसेरा होगा कल मेरा
किसी और के आँगन में

क्यों ये रीत "रब" ने बनाई होगी
कहते हैं आज नहीं तो कल
तू पराई होगी,
देके जनम "पाल-पोसकर"
जिसने हमें बड़ा किया,
और वक्त आया तो
उन्ही हाथों ने हमें विदा किया,
टूट के बिखर जाती है
हमारी जिन्दगी वहीं
पर फिर भी उस बंधन में प्यार मिले
जरुरी तो नहीं

क्यों रिश्ता हमारा
इतना अजीब होता है
क्या बस यही "बेटियों" का
नसीब होता है ?

३. खुदा की नेमत हैं बेटियाँ !

बहुत चंचल
बहुत खुशनुमा सी
होती हैं बेटियाँ
नाजुक सा दिल रखती हैं
मासूम सी
होती हैं बेटियाँ
बात-बात पर रोती हैं
नादान सी
होती हैं बेटियाँ
रहमत से भरपूर
खुदा की नेमत हैं बेटियाँ
घर महक उठता है
जब मुस्कुराती हैं बेटियाँ
अजीब सी तकलीफ़ होती है
जब दूसरे घर जाती हैं बेटियाँ
घर लगता है सूना-सूना
कितना रुला के जाती हैं बेटियाँ
"खुशी की झलक"
"बाबुल की लाडली"
होती हैं बेटियाँ
ये हम नहीं कहते
यह तो रब कहता है
कि जब मैं बहुत खुश होता हूँ
तो जन्म लेती हैं
"प्यारी सी" बेटियाँ !

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