Thursday, January 24, 2013

हरी की पूंजी बहूत है !

मगन भया संसार में - माया चारों ओर
ढूंढत ढूंढत मर गए - मिला ना दूजा छोर
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साधू को सोहे नहीं - चूल्हा तवा परात
हरी की पूंजी बहूत है - वोही जाएगी साथ
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सुख का भी क्या भोगना - कहें फकीरी बात
जितना लम्बा दिन भया - उससे लम्बी रात
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मरना पक्का है मगर , जीने की कर बात
आएगी जब आएगी - फिर क्यों देखे बाट
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नहीं रहना संसार में - अब क्या सोचो नाथ
बिनती मेरी मान ले - ले चल अपने साथ |
- सतीश शर्मा 

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