Thursday, March 3, 2016

ज़रूरी है ख़ून !

ज़मीन पर जो दिख रहा है
ख़ून नहीं
ख़ून का धब्बा है
ख़ून तो सोख लिया है
ज़मीन ने

शरीर पर जो दिख रहा है
जख़्म है
दर्द तो सोख लिया है
शरीर ने

कुछ ही दिनों में
ख़ून के धब्बे पर
जम जाएगी धूल की परत
धीरे-धीरे फिर मिट जाएगा
जख़्म का निशान भी

कोई आँख नहीं देख पाएगी
दिल के जख़्म को
ज़मीन नहीं सोख पाएगी
ताउम्र दिल से रिसते ख़ून को

पर राजनीति के लिए
ज़रूरी है ख़ून
ज़रूरी है ख़ून की क़ीमन । 


- रोहित कौशिक ( शिल्पायन से प्रकाशित संग्रह 'इस खंडित समय में' से )

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