Thursday, March 3, 2016

काव्य पाठ सूरज का !

कुहरे की चादर को
भूरी एक चिड़िया ने
नोकदार चोंच से
काटा पहले,
फिर चीरती चली गई
दूर आसमान से

सूरज ने
अचानक अपना ररक्तवर्णी चेहरा
उठाया आसमान में

लड़ते हुए कुहरे से
नदी ने
खुली बाँहों में
भर लिया सूरज को

फिर सूरज
चिड़िया से,
नदी से,
काव्य पाठ करता रहा
मैंने सिर्फ़ सूरज का काव्य पाठ दुहराया
देर तक ।


- विष्णुचन्द्र शर्मा

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