Thursday, March 3, 2016

रखा इतना ही !

चावल के दो दाने संग
चुटकी भर नमक रखा

फटे जूते, दूरिहा मंजिल
पाँवों की धमक रखा

तन सूखा, धन भी सूखा
मन अविकल धमक रखा

काँटे मीत, प्रीत और रीत
मुरझाने के पहले गमक रखा

रख सकता था महल अटारी, नहीं रखा
रख सकता था कृपाण कटारी, नहीं रखा
रख सकता था सोन थारी, कहाँ रखा
रख सकता था सोलह तरकारी, कहाँ रखा

रखा इतना ही -
कि रहा रहने जैसा
कहा उतना ही -
कि कहा कहने जैसा

ढहा जितना
थहा उतना
ढहते-ढहते
थहते-थहते
बहुत ही कम रहा
बहुत कम रहा
मतलब बहुत ही नम रहा ।


साभार : जयप्रकाश मानस

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