Saturday, May 9, 2015

गजल !

मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से
किसी दिन मर न जाएँ हम ख़ुशी से

मुहब्बत यूँ मुझे है बतकही से
निभाए जा रहा हूँ ख़ामुशी से

ये कैसी बेख़ुदी है जिसमे मुझको
मिलाया जा रहा हैं अब मुझी से

उतारो भी मसीहाई का चोला
हँसा बोला करो हर आदमी से

ख़बर से जी नहीं भरता हमारा
मजा आता है केवल सनसनी से

उजाला बांटने वालों के सदके
हमारी निभ रही है तीरगी से

ये बेदारी, ये बेचैनी का आलम
मैं आजिज़ आ गया हूँ शाइरी से


साभार  - वीनस केशरी

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