Monday, January 6, 2014

फिर भी उसे मिला नाम खूनी पुल !

मुश्किल से दस बीस थी
रोज गुजरने वाली गाड़ियों की संख्या
उन दिनों
गर्व से भर जाता था
पुल का जर्रा जर्रा
लोगो को पार कर
बहुतों ने कहा था
पुल को शुक्रिया
बहुतों की तकलीफों में
काम आता था
बाढ़ में , रात में
जल्दी में, बीमारी में
जब भी होते थे लोग
सबका साथ निभाया था इसने
पर अब
रोज गुजरती है हजारों गाड़िया
हजारो लोग
अक्सर झुक जाता है
सालों से गर्व से खड़ा लोहे का ये पुल
सैकड़ों दरारे पद गई है
इसकी सड़क पर
कई कल पुर्जे भी घिस गए
पर फिर भी चुपचाप
सबको करता रहा पार
देखता रहा सबकी अहमियत
अपने से ऊपर
पर एक दिन
वह सह नहीं पाया
और
जन्म लेने लगे हादसे
दो चार दस बीस
फिर सैकड़ों हजारो
उसकी कोई गलती न थी
फिर भी उसे मिला नाम
खूनी पुल
मनहूस पुल
हत्यारा पुल
जिस पुल पर चलकर
कभी दरी थी मैं
उस पुल पर
आज दया आई

- सरस्वती
निषाद

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