Monday, January 6, 2014

फुलकारी बन्ने की चाह !

डिब्बों में बंद
रंगीन धागे
आपस में उलझे
गांठ बने सिसक रहे
सोचा था
किसी राजा की पोशाक में गुथ
उसकी शान बढ़ाएंगे
किसी रानी की चूनर में बिंध
बिजलियाँ गिराएंगे
किसी दुल्हन की चोली के
तार बनेंगे
किसी दुल्हे की शेरवानी में
दुपट्टा बन खिलेंगे
पर गुड़मुड़ाते भाग्य ने
एक दूसरे में ऐसा लपेटा
कि सुई की नोक नसीब होने से पहले
तोड़कर फेक दी गई
धागों सहित
रद्दी की टोकरी में
और फिर
टोकरी उड़ेल दी गई
कूड़ेघर में
वाही कूड़ाघर
जिससे लगी सड़क से होकर
दिनरात
गुजरती हैं हजारों गाड़ियां
हजारों सवारियां
नक् मुह दबाये लोग
रंगीन फुल्कारियों के धागो को
आ रही है सबकी आहट
महसूस हो रहा है
उसपर से गुजरते
पहियों का भार
सुनाई देते है
जूतों के पदचाप
लोगों की बातें
बेचारे धागे
अब भी कूड़े के ढेर में दबे
सिसक रहे है
अपनी किस्मत की गांठों पर
फुलकारी बन्ने की चाह
कब की
दब कर मर चुकी

- सरस्वती निषाद

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