Tuesday, October 4, 2011

तू मचलता क्यों नहीं ?

ऐ थके हारे समंदर तू मचलता क्यों नहीं
तू उछलता क्यों नहीं .

साहिलों को तोड़ के बाहर निकलता क्यों नहीं
तू मचलता क्यों नहीं
तू उछलता क्यों नहीं

तेरे साहिल पर सितम की बस्तियाँ आबाद हैं,
शहर के मेमार’ सारे खानमाँ-बरबाद’ हैं
ऐसी काली बस्तियों को तू निगलता क्यों नहीं

तू मचलता क्यों नहीं
तू उछलता क्यों नहीं

तुझ में लहरें हैं न मौज न शोर..
जुल्म से बेजार दुनिया देखती है तेरी ओर
तू उबलता क्यों नहीं

तू मचलता क्यों नहीं
तू उछलता क्यों नहीं

ऐ थके हारे समंदर

तू मचलता क्यों नहीं
तू उछलता क्यों नहीं

ब्लॉग कानपुर मासिक पत्रिका से साभार.....

1 comment:

  1. जब यही समंदर जोश में आता है तो सब निगल जाता है। पर यह भारतीय जनता जैसा समंदर है जो न मचलता है न उछलता है, ऐ थके हारे समंदर.... बेहतरीन

    ReplyDelete