Saturday, October 1, 2011

मैं !

मैं नारी हूँ ,स्वर्ग से उतरी
अमृत की वह पवित्र बूंद
जिसको पीने से ,
... अमरत्व की प्राप्ति होती है ,

पर क्या ,आज भी वह दर्जा आ सकी हूँ मैं ??
जो मेरा भी जन्मसिद्ध अधिकार होना चाहिए .
सबको नज़र आता है , तो ,
सिर्फ मेरा रूप ,
टिकती हैं सबकी आँखें ,मेरी आँखें , मेरे होंठ , मेरे वक्ष पर ...
क्या मेरी आँखों में झांक कर देखी है , किसीने , मेरी वेदना , ,
सुना है मेरा मूक चीत्कार ,क्या सुने हैं किसीने ,
मेरे होंठों के अनकहे शब्द ??

क्या किसी ने कभी सोचा ,
कि ,मेरे अंदर एक हृदय है ,जो संवेदनशील है ,
जो धड़कता है , जो धधकता है ,
जब तुम मुझे खुद से ,
छोटा , हीन और कम अक्ल मानते हो .।
क्या तुम कभी माप पाये ,मेरे हृदय की अंतहीन सीमारेखा ?
तुम तो मुझे देवी बना कर पूजते रहे ,
पर देवी तो पाषाण है ,
मैं तो इन्सान हूँ
मगर तुम मुझे इन्सान मानते तो , कभी दोयम दर्जा ना देते .
दोयम मैं हूँ भी नहीं ..
तुम नर हो ,
मुझमें तुमसे दो मात्राएँ अधिक हैं , मैं नारी हूँ ,
तुमसे कहीं अधिक सबल ,तुमसे कहीं अधिक सशक्त ..
मैं पराधीन नहीं मैं पराधीन नहीं ....

- सुलेखा पाण्डेय ...

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