Saturday, October 1, 2011

प्रिये ! अब तो आ जाओ !

मचल रहा तूफान हृदय में
प्रिये, अब तो आ जाओ

दिन लगते वर्षों जैसे
रातें युग सी लगती हैं
लम्हा-लम्हा इंतजार का
तेरी कमी खटकती है

बाट देखते आंखें थक गईं
लगता जैसे सांसें रुक गईं
नयनों से बहती निर्झरणी
वक्त थमा,घडियां रुक गईं

तेरा मन निर्मल,निश्छल है
मेरे मन का तू संबल है
आस है तू,विश्‍वास है तू
तेरा वजूद मेरा बल है

माना कि अभी है प्रीति नई
पर लगता सदियां गुजर गईं
तेरी बाट निहार रहा हूं
कब से तुझे पुकार रहा हूं

अब इतना भी न तडपाओ
प्रिये,अब तो आ जाओ

- ओंकार मणि त्रिपाठी

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