Sunday, September 18, 2011

कविता की समाधि !

तुम वह जो टीला देख रहे हो
वह कविता की समाधि है।
कविता जो कभी वेदनाओं का मूर्त रुप हुआ करती थी
उपभोक्तावाद की संवेदनहीनता ने
उसकी हत्या कर दी है।
कविता जो चित्र बनाती थी
कविता जो संगीत सृजन करती थी
कविता जो भाव उद्वेलित करती थी
अब टी वी के हास्य मुकाबलों ,
मञ्चीय हास्य कवि सम्मेलनों
और ब्लौग्गरस की दुनिया में
शेष हो गयी है।
आज का युवा
बारहवीं पास या फेल
काल सेन्टर में बैठ
अमीरीकियों की नकल कर
शिकागो में होने की गलतफहमी का शिकार
विवेकानन्द हो गया है।
भाव कविता की पंक्तियों से निकल
शेयर बाजार और सेन्सेक्स के पर्याय हो गये हैं।
कविता अब प्रेम की भाषा नहीं
सड़क छाप Romeo’s की सेक्सी शायरी हो गयी है।
आज विवाह जब evolution के प्रकरण से दूर
वाणिज्यिक गठ बन्धन हो गया है
और तमाम सम्बन्धों की नींव
स्वार्थ की सीमेंट से जुड़ी हों
नित नये नये भगवानों
व आराध्यों के गढ़ने की प्रक्रिया में
हनुमान चालीसा से लालु चालीसा
का सफर तय करने में
कविता की मौत एक स्वाभाविक उपसंहार है।


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