Sunday, September 25, 2011

शेषधर तिवारी जी की कुछ कवितायेँ !!

मिला करता है अपने आप से भी बेरुखी से


मिला करता है अपने आप से भी बेरुखी से
बहुत मायूस हो बैठा है शायद ज़िंदगी से

अँधेरा ओढकर सूरज को झुठलाता मैं कब तक
निकल आया हूँ अब मैं जामे जम की तीरगी से

ख़याल अच्छा रहा होगा कभी, बहलाने को दिल
नहीं रिश्ता कोई सहरा का अब भी तिश्नगी से

खुदा आये न कोई ऐब मेरी शख्सियत में
मुतासिर सोच हो जाती है अंपनी ही कमी से

अदब में क्यूँ सियासत हो कि हो फिरकापरस्ती
कलम के जो सिपाही हैं लड़ा करते इन्ही से

हमारी खामुशी की चीख सुन लेता है मौला
मिला करता सदाए हक़, सदाक़त की हिसी से

समंदर पर भरोसा क्यूँ नहीं होता क़मर को
किये ही जा रहा तौज़ीन जाने किस सदी से


चलो हम आज इक दूजे में कुछ ऐसे सिमट जाएँ


चलो हम आज इक दूजे में कुछ ऐसे सिमट जाएँ
हम अपनी रंजिशों, शिकवाए ख्वारी से भी नट जाएँ

मेरी ख्वाहिश नहीं है वो अना की जंग में हारें
मगर दिल चाहता है आके वो मुझसे लिपट जाएँ

हमारी ज़िंदगी में तो मुसलसल जंग है जारी
है बेहतर भूल हमको आप खुद ही पीछे हट जाएँ

अलग हों रास्ते तो क्या है मंजिल एक ही सबकी
नहीं होता ये मुमकिन हम उसूलों से उलट जाएँ

चलें हम प्रेम और सौहार्द के रस्ते पे गर मिल के
तो झगडे बीच के खुद ही सलीके से निपट जाएँ

हमें तो चाह कर भी आप पर गुस्सा नहीं आता
कहीं गुस्से में जो खुद आप वादे से पलट जाएँ

भरोसा है हमें इक दूसरे पर ये तो अच्छा है
गुमां इतना न हो इसका कि हम दुनिया से कट जाएँ


मैं ही भगिनी मैं ही भार्या मैं जननी बन आई हूँ


मैं ही भगिनी मैं ही भार्या मैं जननी बन आई हूँ
जो चाहे कह लो मैं अपने साजन की परछाई हूँ

जोहूँ उनकी बाट बिछाऊँ पलकें उनकी राहों में
मेरा सारा दर्द मिटे जब सिमटूं उनकी बाहों में

कौन राम है कौन कृष्ण है मैं तो इनको न जानूँ
मेरे तो आराध्य देव मेरे प्रियतम हैं ये मानूँ

क्या बतलाऊँ कैसे साजन बिन हैं मेरे दिन कटते
मेरी तड़प सही न जाती देख मुझे बादल फटते

मेरी जुल्फें देख घनेरे बादल कारे हो जाते
मैं जिसकी भी ओर निहारूँ वारे न्यारे हो जाते

मेरा तेजस मुखमंडल सूरज को भी शर्माता है
दावा सूरज का झूठा वो चंदा को चमकाता है

चंदा होता दीप्तिमान बस देख हमारा ही मुखड़ा
दिन मेरा अहसानमंद अँधियारा रोता है दुखड़ा

कांति-श्रोत हैं मेरे प्रियतम मैं तो बस परछाई हूँ
तन-गागर में प्रियतम-प्रेम-सुधा भरकर बौराई हूँ

मेरे मन की अमराई में प्रेम-सिक्त हैं बौर खिले
साजन से बस मेरे साजन मुझे न कोई और मिले


आजमाइश की हदों को आजमाना चाहिए


मुश्किलों से लड़ इन्हें आसां बनाना चाहिए
तैर कर दरयाब के उस पार जाना चाहिए

जिस्म पर तम्गों कि सूरत जो हैं जख्मों के निशां
दिल में इनको अब करीने से सजाना चाहिए

ज़िंदगी जब जख्म पर दे जख्म तो हंस कर हमें
आजमाइश की हदों को आजमाना चाहिए

आईना कहता है क्या हो फिक्र इसकी क्यूँ हमें
अब ज़मीर-ओ-दिल को आईना बनाना चाहिए

देख ली दुनिया बहुत अब देखे ले दुनिया हमें
मौत को भी ज़िंदगी के गुर सिखाना चाहिए

क्या हुआ जो हमसफ़र कोई नहीं है साथ में
अब तो तनहा कारवाँ बनकर दिखाना चाहिए

ज़िंदगी खुद्दारियों के साथ जीने के लिए
जह्र पीकर शिव सा हमको मुस्कराना चाहिए

जिसके हर इक शेर ने तुम को नुमाया कर दिया
उस ग़ज़ल को ज़िंदगी भर गुनगुनाना चाहिए


उस ग़ज़ल को ज़िंदगी भर गुनगुनाना चाहता हूँ


मुश्किलों से लड़ इन्हें आसां बनाना चाहता हूँ
तैर कर दरयाब के उस पार जाना चाहता हूँ

जिस्म पर जो हैं निशां जख्मों के, हैं तम्गों सरीखे
मैं करीने से इन्हें दिल में सजाना चाहता हूँ

ज़िंदगी देती रहे यूँ जख्म मुझको बारहा, मैं
आजमाइश की हदों को आजमाना चाहता हूँ

क्यूँ करूँ मैं फिक्र कोई आईना क्या बोलता है
फैसला अपना मैं दुनियाँ को सुनाना चाहता हूँ

देख ली दुनिया बहुत अब देख ले दुनिया मुझे भी
मौत को भी ज़िंदगी के गुर सिखाना चाहता हूँ

क्या हुआ गर साथ मेरे हमसफ़र कोई नहीं है
मैं अकेले कारवाँ बनकर दिखाना चाहता हूँ

मैं जिऊंगा ज़िंदगी खुद्दार रहकर ज़िंदगी भर
जहर पीकर भी मैं शिव सा मुस्कराना चाहता हूँ

दी मुझे पहचान इक जिसके हसीं अशआर ने, मैं
उस ग़ज़ल को ज़िंदगी भर गुनगुनाना चाहता हूँ


"घूरे के भी दिन फिरते हैं"


हमारा ही लहू पीकर जो लालम लाल हैं देखो
वही सड़कों को कहते ओम् जी के गाल हैं देखो

जब इनके सामने हमने रखा इक आईना, भडके
विशेष अधिकार का लेकर खड़े अब ढाल हैं देखो

किरन जब भी निकलती है अँधेरा दूर होता है
ये नादां रोशनी पर फेंकते अब जाल हैं देखो

समझते थे जिसे थोथा चना वो बन गया "अन्ना"
ये पागल नोचते अब हर किसी के बाल हैं देखो

कहावत है कि "घूरे के भी दिन फिरते हैं" नेताजी
जहीं जो हैं बदल लेते खुद अपनी चाल हैं देखो

जुगनुओं की रोशनी से तीरगी घटती नहीं


जुगनुओं की रोशनी से तीरगी घटती नहीं
चाँद हो पूनम का चाहे पौ मगर फटती नहीं

ज़िंदगी में गम नहीं तो ज़िंदगी का क्या मजा
सिर्फ खुशियों के सहारे ज़िंदगी कटती नहीं

जैसी मुश्किल पेश आये कोशिशें वैसी करो
आसमां पर फूंकने से बदलियाँ छंटती नहीं

गर मिजाज़ अपना रखें नम दूसरों के वास्ते
शख्सियत अपनी किसी भी आँख से हटती नहीं

झूठ के बल पर कोई चेहरा बगावत क्या करे
आईने की सादगी से झूठ की पटती नहीं


- शेषधर तिवारी

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