पुरस्कृत कविता: उम्मीद भरा गीत
शब्दों का ही सामर्थ्य है
दिन अभी इतने मैले नहीं हुए हैं
निथर जाएगा सब आकाश
चाँद फिर तुम्हें मनुहारने
झाड़ियों की ओट तक
चला आएगा
एक कविता इतनी उम्मीद भरा गीत है
सत्ता और शोषण की
तमाम नाकेबंदियों में
आदमी आज़ाद है तो
इसी दम पर
कोई पुचकारने या सहलाने नहीं आएगा
हमें अपने अपने हिस्से के पात्र
स्वयं गढ़ने होंगे
कुंद हुए किनारों पर
अंगूठे से धार चखनी है
तुम रहो या ना रहो
तुम्हारे पुराने कपड़ों में कोई और होगा
बीत चुके सावन में लगाए पेड़ों पर
तुम्हारी ही शक्ल के लोग
झूला झूलते होंगे
एक दिन जरूर ऐसा आएगा
धरती का बाँझपन
और युद्धरत मनुष्यता
तुम्हारे सामने बौने नज़र आएँगे
तब तुम समझोगे
मेरे शब्द की ताक़त क्या है।
No comments:
Post a Comment