एक दिन आया मेरे घर
एक जोड़ा पंछियों का
ला रहा था एक तिनका
दूसरा उसको सजाता
एकदूजे के समन्वय से
किया निर्माण गढ़ का
फिर दिया दो डिंब मादा ने
बड़ी ही वेदना से
और नर था कर रहा
मादा के भोजन की व्यवस्था
और मादा से रही थी
बैठकर उन अंडजों को
आ गए चूजे अचानक
छेदकर उन अंडजों को
और कोलाहल मचा फिर
घर के उस वातावरण में
फिर समय वह आ गया
जब आ गए थे पंख उनके
और थे तैयार अब वह
नापने विस्तृत गगन को
उड़ चले आकाश में वह
हो बड़े स्वच्छंद दोनों
ना ही रोका, ना ही टोका
था, उन्हें उनके जनक ने
छोड़ दो उस दम्भ को
जो रूढ़ियों के नाम होते
हे मनुज ! अब तो करो निर्बंध
अपनी संतति को, क्यों हो रोते।
क्यों हो रोते।।
श्रद्धा पाण्डेय जी के फेसबुक वॉल से साभार
No comments:
Post a Comment