Thursday, June 19, 2025

चालीस पार लोगों के लिए कुछ लाइनें

जीवन का ये पड़ाव
मझधार वाला होता है......

बच्चे जवान होने लगते हैं, और हम
प्रौढ़ होकर बुढ़ापे की सोचने लगते हैं......

थोड़ा नमकीन सा होता है ये समय
थोड़ा sweet थोड़ा salty जैसा......

कभी स्वच्छंद होकर हवा में उड़ने का मन करता है
तो कभी, जिम्मेदारियों के तले दबा - दबा सा लगता है......

खुलकर जीना भूलने लगते हैं
नियमों पर चलना सीखने लगते हैं......

शुगर, बी पी के कारण योग करने लगते हैं
भोजन पचाने के लिए सैर करने लगते हैं......

पर बहुत खास होता है ये समय 

बच्चों को बड़ा होते देख मन प्रसन्न होता है
बाप के जूते में बेटे का पैर होता है
बिटिया हो जाती है मां के बराबर
और, उसका ऊंचा कद हील के बगैर होता है।

बहुत खास होता है ये समय।।

श्रद्धा पाण्डेय जी के फेसबुक वॉल से साभार

।।जब मैं मर जाऊं ।।

जब मैं मर जाऊं तब वो
लोग ज़रूर आएं मुझसे मिलने
आख़िरी बार
जो मेरे दोस्त रहे सबकी नजर में
जिनमें सब कुछ था
समर्पित दोस्ती के सिवा।
मुझे उनका भी इंतज़ार रहेगा
घाट पर जाने से पहले जो
मुझे अधार्मिक मानते रहे
अपनी धार्मिक आस्थाओं के सामने
मेरी मौत सनातन मानी उन्होंने,
उनका यह भी मानना था कि
मेरी मृत्यु किसी दुनिया चलानेवाले
देवी देवता के साजिश का हिस्सा है। 
मैं उनकी प्रतीक्षा भी करूँगा
अंतिम यात्र पर निकलने से पहले
जो मानते हैं कि जीवन जहां है,
वहां मृत्यु भी बिल्ली सी
दबे पांव आती हैं और
मौका देखकर छीके पर लपकती है
और गिरा देती है
उस बर्तन को
अहंकार से भरा झूलता देह संसार 
सहम कर टूट जाता है
एक चिड़िया फुर्र से उड़ जाती
पिंजरा छोड़ कर। 
अग्निस्नान से पहले
मुझे उन बुजुर्गों का इंतज़ार भी रहेगा
जिनके आशीष
कवच बनकर 
मुझे सहेजे रहे और जिन्होंने मेरा
जीवन आसान बनाया एक सांस से
 दूसरी सांस के बीच की दूरी
तय करते हुए 
उनका शुक्रिया भी कहना चाहूंगा
जिन्होंने मुझे मौलिकता से जीने भी नही दिया
और मुझे अकेला भी नही छोड़ा कि
मैं गहरी नींद में उतर जाता
बिना किसी आहट के।
उनका भी आभार व्यक्त करना चाहूंगा
राम नाम सत्य के उद्घोष से पहले
उन सह्रदय मित्रो का,
अगर वो अपनी व्यस्तता से समय निकालकर
मेरी मिट्टी को अंतिम यात्रा में
ले जाने पहले आ गए
मैं उन्हें खुश होते हुए देखना चाहूंगा
जिन्होंने मुझे नँगा आते हुये देखा था और
मुझे नँगा जाते हुए देखने के लिए अपने
कामधाम छोड़ कर आयेगें।
उन्हें अच्छा लगेगा यह देखकर
कि मौत ने मुझे आखिरकार पकड़ ही लिया और मैं फड़फड़ा भी नही पा रहा हूँ,
मौत से बचकर कहाँ नही भागा .
मंदिर में छुप गया,
मस्ज़िद चर्च गुरूद्ववारा
सब जगह मौत से डर कर भागा।
ईश्वर ने मुझे अपने घर से
निकल जाने को कहा।
मुझे लगा सब जगह असुरक्षित हूँ मैं।
हस्पतालों में सर्वाधिक असुरक्षित रहा। 
मैं उन से भी मिलना चाहूंगा
आखरी वक़्त में
जिन्होंने अपने दिलों में जगह दी मुझे
और मेरे लिए मेरी मौत आसान बनाई।
हाँ, उस बच्चे से मुझे मिला देना
जो मेरे अंधियारे जीवन में बार बार उम्मीद की
रोशनी बनकर आया,
मेरी जिजीविषा बना 
मौत से पहले कई बार। 
मौत के बाद  इंतजार रहेगा
मुझे उस बच्चे को देखने का 
जिसके पास है पूरा जीवन।

** अजामिल
सर्वाधिकार सुरक्षित

क्यों हो रोते।।

एक दिन आया मेरे घर 
एक जोड़ा पंछियों का
ला रहा था एक तिनका 
दूसरा उसको सजाता 

एकदूजे के समन्वय से 
किया निर्माण गढ़ का 
फिर दिया दो डिंब मादा ने 
बड़ी ही वेदना से

और नर था कर रहा 
मादा के भोजन की व्यवस्था 
और मादा से रही थी 
बैठकर उन अंडजों को 

आ गए चूजे अचानक 
छेदकर उन अंडजों को
और कोलाहल मचा फिर 
घर के उस वातावरण में 

फिर समय वह आ गया 
जब आ गए थे पंख उनके 
और थे तैयार अब वह
नापने विस्तृत गगन को 

उड़ चले आकाश में वह 
हो बड़े स्वच्छंद दोनों 
ना ही रोका, ना ही टोका
था, उन्हें उनके जनक ने 

छोड़ दो उस दम्भ को 
जो रूढ़ियों के नाम होते 
हे मनुज ! अब तो करो निर्बंध 
अपनी संतति को, क्यों हो रोते। 
                         क्यों हो रोते।।

 श्रद्धा पाण्डेय जी के फेसबुक वॉल से साभार 

Tuesday, January 28, 2025

कविता

जहां तक काम चलता हो ग़िज़ा से
वहां तक चाहिए बचना दवा से।

अगर ख़ून कम बने, बलग़म ज्यादा
तो खा गाजर, चने, शलज़म ज्यादा।

जिगर के बल पे है इंसान जीता
ज़ोफे(कमजोरी) जिगर है तो खा पपीता।

जिगर में हो अगर गर्मी का एहसास
मोरब्बा अमला खा या अनानास।

अगर होती है मेदा में गिरानी(भारीपन)
तो पी ली सौंफ या अदरक का पानी।

थकन से हो अगर अज़लात (मांसपेशियाँ) ढीले
तो फ़ौरन दूध गरमा गरम पी ले।

जो दुखता हो गला नज़ले के मारे
तो कर नमकीन पानी के ग़रारे।

अगर हो दर्द से दाँतों से बेकल
तो उंगली से मसूड़ों पर नमक मल।

जो ताक़त में कमी होती हो महसूस
तो मिस्री की डली मुल्तान की चूस।

शफ़ा चाहिए अगर खांसी से जल्दी
तो पी ले दूध में थोड़ी सी हल्दी।

दमा में ये ग़िज़ा बेशक है अच्छी
खटाई छोड़ खा दरया की मछली।

अगर तुम्हें लगे जाड़े में ठंडी
तो इस्तेमाल कर अंडे की ज़र्दी।

जो बदहज़मी में चाहे तू अफ़ाक़ा(आराम)
तो दो इक वक़्त का कर ले तू फ़ाक़ा(उपवास)।।

*- अपने फेसबुक वाल से साभार*