Friday, August 17, 2012

और बजता है वह गीत !

बार-बार एक ही गीत बजता है
बज-बजकर रूक जाता
कोई अजनबी लड़की कहती है
कि आप जिनसे करना चाहते हैं बात
वह उत्तर नहीं दे रहा

मैं सूख रहे एक पौधे को पानी देता हूं
और बजता है वही गीत
अपनी बिमार मां को दवाइयां खिलाता हूं
और बजता है वह गीत
सब्जियां लाता हूं बाजार से
रोटियां सेंकता हूं
ताकि बच्चे सो न जायं भूखे
और बजता है वह गीत

खाता हूं दो कि जगह एक ही रोटी
और बजता है वह गीत
इंतजार करता हूं खूब
जैसे इंतजार करती है नदी
जैसे खेत इंतजार करते हैं
चिड़िया इंतजार करती है जैसे
जैसे घर के दरवाजे इंतजार करते हैं
दूर देश की एक पहचानी आवाज

सो जाता हूं इंतजार करते
जल्दी उठने की चिंता में
दफ्तर की सिढ़ियां याद आती हैं
तीस किलोमिटर दूर एक कमरे में रखी
फाइलें याद आती हैं

सो जाता हूं कि जैसे जग जाता
बजता वह गीत

वह अजनबी लड़की बार-बार एक ही बात रटती
समय के इस मोड़ पर
तेज होती जाती हैं अजनबी अवाजें
बजता है बार-बार एक ही गीत

और मैं तुम्हारी चुप हो गई अवाज
के साथ गुम हो रहा हूं हर रोज
धंसता जाता एक भयानक
और अंधी सुरंग में....।

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