Tuesday, August 22, 2017

धूप !

धूप !
तुम धूप सी महका करो
तनिक झुक जाओ
इतनी मत तना करो

धूप !
तुम पीठ पर रेंगो
रेशमी छुअन बन

बिच्छू बन दंश न् दिया करो

धूप !
तुम दिसंबरी बनो
जेठ की  कामना मत बनो

धूप !
तुम हर उस जगह जरूर पहुंचो
जहां नमी है , सीलन भी

उगाओ कुछ धरती के फूल
मत झुलसाओ

बहार ले आओ

राघवेंद्र,
अभी-अभी

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