Saturday, May 22, 2021

तू ही मुझको भाता है।

तन की मन की दूरी है पर 
कैसा रिश्ता नाता है
तू ही जानम तू ही जानम
तू ही मुझको भाता है

अंग अंग तू भोर नदी की
सिंदूरी सी काया है
मलयज शीतल सुरभित कोमल
तू मेरा हम शाया है

खुली आंख हो बंद पलक हो
तू सपनो में आता है

तन की मन की दूरी है पर ,
कैसा रिश्ता नाता है
तू ही जानम तू ही जानम
तू ही मुझको भाता है

इंद्र धनुष के रंग समेटे
मन मोहक मुस्कान तेरी
तू पूजा की थाली जैसी
धान पान अभिमान मेरी

शतदल कमल कैद में भौरा
देखो क्या सुख पाता है

तन की मन की दूरी है पर ,
कैसा रिश्ता नाता है
तू ही जानम तू ही जानम
तू ही मुझको भाता है

- राजेश कुमार श्रीवास्तव

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