Wednesday, December 14, 2011

सुलझता फितूर !

आसमां का बरसना अभी बाक़ी है...
ज़मीं का उगना बाक़ी है...
बाक़ी है कहानी में कहानी की कहानी...
बात की बात करनी बाक़ी है...
क्या-क्या गुज़र चुका है अब तलक़....
क़तार में खड़ा बाक़ी अभी बाक़ी है...
वक़्त के कठघरे में वक़्त की पेशी बाक़ी है ...
और ख़त्म होने से पहले
अंजाम भी अपना अंजाम देखना चाहता है...
ये ख्वाहिशों की ख्वाहिशें कभी पूरी हो सकेंगी...
या रह जाएगी बाक़ी दास्तां हर कहानी की...

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