एक युग बीत गया यूँ चाहत को चाहते
हम दिशा हीन थे यूँ चादर फैलाते ,
ओढ़ कर जब सर छुपाया हमने
अँधेरा दिल का न छुपाया हमने .
तुम सोचते हो हममे ये गुण कैसा
छुपाये न छुपे ये आशियाँ कैसा ,
ज़माने को टटोलते हुए यूँ दिन गुज़ारे
पर ,
मिल न सके दिलों के चिराग हमारे ।
-अमिताभ बच्चन
हम दिशा हीन थे यूँ चादर फैलाते ,
ओढ़ कर जब सर छुपाया हमने
अँधेरा दिल का न छुपाया हमने .
तुम सोचते हो हममे ये गुण कैसा
छुपाये न छुपे ये आशियाँ कैसा ,
ज़माने को टटोलते हुए यूँ दिन गुज़ारे
पर ,
मिल न सके दिलों के चिराग हमारे ।
-अमिताभ बच्चन
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