ओढ़नी के एक छोर में मैने
बाँध रखा है तुम्हारा ख्याल
दूसरा छोर नम है पता है क्यूँ
उसमे ज़ज्ब है भीगे ज़ज्बात
छलक उठे थे कल रात --
तुम्हे याद करके जो -
हरवक्त साथ रही कभी भुलाई ही नहीं
इसी लिए तो कहा तेरी याद आई ही नहीं -
"संकरी सी झिरी से
आती मद्धिम सी रौशनी
दाहिनी बांह पर
नर्म गर्म सा स्पर्श
तीव्र हुई धडकन
धीमे सी उठीं पलकें
और फिर मै लौट गई
उसी स्वप्न जगत में -
-तुम्हे ढूंड रही हूँ
तुम मिल जाओ
तो खुद को पा सकूँ !
- दिव्या शुक्ला
बाँध रखा है तुम्हारा ख्याल
दूसरा छोर नम है पता है क्यूँ
उसमे ज़ज्ब है भीगे ज़ज्बात
छलक उठे थे कल रात --
तुम्हे याद करके जो -
हरवक्त साथ रही कभी भुलाई ही नहीं
इसी लिए तो कहा तेरी याद आई ही नहीं -
"संकरी सी झिरी से
आती मद्धिम सी रौशनी
दाहिनी बांह पर
नर्म गर्म सा स्पर्श
तीव्र हुई धडकन
धीमे सी उठीं पलकें
और फिर मै लौट गई
उसी स्वप्न जगत में -
-तुम्हे ढूंड रही हूँ
तुम मिल जाओ
तो खुद को पा सकूँ !
- दिव्या शुक्ला
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