आज फिर लम्हा लम्हा ज़िन्दगी को मिला ...
खुशियों का सलीका ...
ख़ास कुछ नहीं ....
बस ...
बरबस उमड़ते प्यार ने बनाया ..
यह दिन सरीखा ...
जिनकी कोशिशो से मिला इस आकृति को सृजन ...
फिर उन मात पिता को कैसे न करून मैं प्रथम वंदन :
संबंधो के लालटेन से सदैव उभरी दुनियादारी की सीख ...
ऐसी प्रीत से ही प्रफ्फुलित हो `शालिनी' चलती निर्भीक
प्रणय के पारस के सौजन्य से ..
मिटा एकाकी का खेद
महोदय आपका संग पाकर ..
शालिनी को मिला आनंदअतिरेक
मित्रता के मंत्रो के
उच्चारण से फूटा जो दिव्य प्रेम का बीज ..
सचमुच ...
चारो और से सुनायी देता है ...
मित्रो के गीत ...
भवसागर की गहराईयों से मोती को पाने की युक्ति ..
बिन गुरुजनों के आशीर्वाद के कहाँ मिल सकती है ..
जीवन में उपलब्धि ...
भावो की धार है तीव्र ..
शायद इसीलिए शब्द हो गए शिथिल ..
टपटपाये नैनो से ...
आप सभी को देती हूँ आभार अनेक
- शालिनी मेहता
nice thought
ReplyDeletemishra j