गाँव में ज़मीन है
गाँव में पेड है
गाँव में नदी है
गाँव में खनिज है
गाँव में लोग हैं
गाँव में दायमनी बरला भी है
गाँव की ज़मीन पर कम्पनी की नजर है
गाँव की नदी पर कम्पनी की नजर है
गाँव के पेड़ों पर कम्पनी की नज़र है
गाँव के खनिज पर कम्पनी की नज़र है
लेकिन गाँव में दायमनी बरला रहती है
सरकार कम्पनी से डरती है
पुलिस कम्पनी से डरती है
अखबार कम्पनी से डरते हैं
दयामनी बरला कम्पनी से नहीं डरती
कम्पनी का राज है
कम्पनी नाराज़ है इसलिये कम्पनी बहादुर के हुक्म से
पुलिस बहादुर ने दयामनी बरला को
पकड़ कर जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया है
आओ शुक्र मनाएं दायमनी बरला अब जेल में है
अब दायमनी बरला कम्पनी बहादुर को रोक नहीं सकेगी
अब कम्पनी बहादुर दायमनी बरला के गाँव की नदी को छीन लेंगे
अब कम्पनी बहादुर दायमनी बरला के गाँव की ज़मीन को छीन लेंगे
अब कम्पनी बहादुर दायमनी बरला के गाँव के खनिज को छीन लेंगे
अब कम्पनी बहादुर देश का विकास कर देंगे
अब कम्पनी बहादुर सब ठीक कर देंगे
पता नहीं आखिर हमें इस देश की सारी दायमनी बरलाओं से कब मुक्ति मिलेगी ?
कब हमारी सारी नदियाँ
सारे पहाड़
सारी ज़मीनों
और सारे जंगलों पर कम्पनी का कब्ज़ा होगा
कम्पनी के कारखाने
कम्पनी की नौकरी
कम्पनी की कारें
कम्पनी के शापिंग माल
कम्पनी की सड़कें
कम्पनी के टोल बूथ
कम्पनी के कालेज
कम्पनी के आई आई एम्
कम्पनी के आई आई टी
कम्पनी की यूनिवर्सिटी
जिसमे पढ़ने वाले बनेगे कम्पनी के गुलाम
कम्पनी के मतलब की शिक्षा
कम्पनी के मतलब का ज्ञान
कम्पनी के फायदे के लिये विज्ञान
कम्पनी की मर्जी की सरकार
कम्पनी के हुकुमबरदार कोतवाल
अब तुम ही बताओ
हमको दयामनी बरला से क्या काम ?
- फैसल अनुराग
अच्छी सच्ची कविता।
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