मैंने न जाने कितने ही आवेदन किये
कितने ही लोगों से निवेदन किये
जाने कितने ही दफ्तरों के चक्कर काटे
कितनी ही गलियों की खाक छानी
... न दिन को दिन माना
न रात को रात मानी
न जाने कितने ही जूतों के घिस गये तले
फिर भी मैं और चलने को तैयार हूं
क्योंकि मैं बेरोजगार हूँ !
न जाने कितने ही जूतों के घिस गये तले
फिर भी मैं और चलने को तैयार हूं
क्योंकि मैं बेरोजगार हूँ !
- कृष्णधर शर्मा
No comments:
Post a Comment