आंखें भीगी
पलकों में नमी सी है
न जाने क्यूँ ये लब
हंसी को कम
अश्को को ज्यादा चूमने लगे हैं...
मौन था मन ,ह्रदय निस्पंद
झुके हैं चक्षु ,मंजुकपोल
और वो न जाने क्यूँ
छुपाते रहे सूखे पड़े उन
अधरों की सुर्ख़ियों में
वो ढाई आखर प्रेम के.....
- राहुल त्रिपाठी
No comments:
Post a Comment