ना जाऊं इस नगरी से ..
मन ये ही चाहता है..
जो जाना हुआ ..
ना रुक पाऊँगी ..
ना रोक पाऊँगी..
उसे तो मिल जाना है सागर में..
बहती धारा को रोका किसने है..
आंसुओं की धारों से गुजरकर..
सारे मोह को त्यागकर ..
जाना तो है..
पर पुरानी चीजों से मोह कहाँ जाता है..
- सुमन पाठक
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