' उन्हें क्या खोजना जो घर जलाएं ?
वो अपने घर गए, हम घर बनाएं ।
हकीकत जान जाती है ये दुनिया
मुखौटे आप हम जितने लगाएं !
मैं गजलें पढ रहा, शामेसुखन है
मेरे कातिल से कहिए,सर छुपाएं !
यहीं पर खत्म ये किस्सा नहीं था,
मगर तुम सो गए तो क्या सुनाएं !
उचट जाती है अब भी नींद मेरी
महज कर याद, तेरी वो सदाएं !
अकेले हम चलेंगे राहेमकतल
कोई देखे तो जीने की अदाएं!
ये लम्बी दास्तां है, जिन्दगी-सी
तुम्हें अच्छी लगी तो कल सुनाएं !!
— रविकेश मिश्र
वो अपने घर गए, हम घर बनाएं ।
हकीकत जान जाती है ये दुनिया
मुखौटे आप हम जितने लगाएं !
मैं गजलें पढ रहा, शामेसुखन है
मेरे कातिल से कहिए,सर छुपाएं !
यहीं पर खत्म ये किस्सा नहीं था,
मगर तुम सो गए तो क्या सुनाएं !
उचट जाती है अब भी नींद मेरी
महज कर याद, तेरी वो सदाएं !
अकेले हम चलेंगे राहेमकतल
कोई देखे तो जीने की अदाएं!
ये लम्बी दास्तां है, जिन्दगी-सी
तुम्हें अच्छी लगी तो कल सुनाएं !!
— रविकेश मिश्र
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