ठूंठ था
नामालूम क्या नाम था उसका
खोखले से जिस्म से
अपनी उचटती हुई
सूखी छालें
टपकाया करता था
तेज़ हवाओं में
उन गुलाबी फूलों वाली
बेलों को
पता ही न चला
बस लिपटती चली आई
इस खोखले से जिस्म पे
लम्हा-लम्हा करके शरारती बेलें----
कभी छेडती उसके खुरदरे से
बदन को गुदगुदा के
और कभी ---
सुन लेती सारी दस्तानें उसकी
सहलाकर उसके जिस्म को
बड़ा खुश-खुश सा दिखता था
बेलों की बुनी
शॉल ओढ़कर वो
उस गली के कोठीवालों ने
कटवा दिया उसे
उस रोज़ बहुत रोया वो
ठूंठ पेड़
आखिर क्यूँ काटी जा रही हैं
गुलाबी फूलों वाली बेलें भी ??
-सनी कुमार
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