प्रस्तुत कविता अनिता निहलानी की है। अनिता की यह "हेरिटेज" पर प्रथम कविता है। उत्तर प्रदेश मे पली बढ़ी अनिता पिछले दो दशकों से असम मे निवास कर रही हैं। इन्होने गणित मे स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की है। कविताओं की तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं और पिछले कुछ समय से इंटरनेट पर लिखने मे सक्रियता भी बढ़ी है।
मैं विद्रोहिणी हूँ !
जो समाज के ढके छिपे व्यापारों को उजागर करना चाहती है
जिससे वह जी सकें, जो मौत की राह देख रहे हैं
मैं संस्कृति और सभ्यता के नाम पर ओढ़ी मानसिकता नहीं हूँ
बल्कि उन्हें कुरीतियाँ और अन्धविश्वास कहने का दुस्साहस !
मैं एक आवाज हूँ !
मानवता के (अमानवीय) ठेकेदारों के बंद कानों के लिये
एक आवाज कारखानों की, खदानों की, हलों-बैलों की
पत्थर तोड़ते मजदूरों की !
मैं मृत्यु हूँ !
तानाशाही दम्भ की, निर्दोषों के खून से सने हाथों की
मैंने सुखद और दुखद क्षण जिए हैं
एक गीत के जन्म और मृत्यु पर
ऐसी मृत्यु जो हजारों का जीवन है !
मेरे जीवित अस्तित्त्व का कोई प्रमाण हो न हो
पर मैं अमर हूँ,
घुमती हूँ बेरोकटोक
मृत्युदन्शी सन्नाटों में
जंगलों के बियाबानों में
क्योंकि मैं एक विश्वास हूँ,
लोलुप शासन के अंत होने का
मेहनतकश वर्ग के फलने फूलने का
जो स्पष्टीकरण चाहता है उनसे
जो सदा से उसके दावेदार रहे हैं
क्योंकि तभी एक नए सूर्य का उदय होगा
क्रांति का सूर्य !
मैं विद्रोहिणी हूँ !
जो समाज के ढके छिपे व्यापारों को उजागर करना चाहती है
जिससे वह जी सकें, जो मौत की राह देख रहे हैं
मैं संस्कृति और सभ्यता के नाम पर ओढ़ी मानसिकता नहीं हूँ
बल्कि उन्हें कुरीतियाँ और अन्धविश्वास कहने का दुस्साहस !
मैं एक आवाज हूँ !
मानवता के (अमानवीय) ठेकेदारों के बंद कानों के लिये
एक आवाज कारखानों की, खदानों की, हलों-बैलों की
पत्थर तोड़ते मजदूरों की !
मैं मृत्यु हूँ !
तानाशाही दम्भ की, निर्दोषों के खून से सने हाथों की
मैंने सुखद और दुखद क्षण जिए हैं
एक गीत के जन्म और मृत्यु पर
ऐसी मृत्यु जो हजारों का जीवन है !
मेरे जीवित अस्तित्त्व का कोई प्रमाण हो न हो
पर मैं अमर हूँ,
घुमती हूँ बेरोकटोक
मृत्युदन्शी सन्नाटों में
जंगलों के बियाबानों में
क्योंकि मैं एक विश्वास हूँ,
लोलुप शासन के अंत होने का
मेहनतकश वर्ग के फलने फूलने का
जो स्पष्टीकरण चाहता है उनसे
जो सदा से उसके दावेदार रहे हैं
क्योंकि तभी एक नए सूर्य का उदय होगा
क्रांति का सूर्य !
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