एक मुक़म्मल ग़ज़ल दोस्तों को सादर----
उम्र-भर की जुदाई मत देना
इतनी लंबी लड़ाई मत देना
आपको हक है ज़ख़्म देने का
पर कभी जगहंसाई मत देना
कर लिया जब कफ़स में तुमने
अब मुझे तुम रिहाई मत देना
टूटते देखूँ दिल कभी अपना
या खुदा वो बिनाई मत देना
बावफ़ा से किया है प्यार"करण"
अब कभी बेवफ़ाई मत देना
- कुमार कर्ण
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