Saturday, August 18, 2012
मकान की उपरी मंजिल पे अब कोई नहीं रहता !
मकान की उपरी मंजिल पे अब कोई नहीं रहता|
वोह कमरे बंद हैं कब से,
जो २४ सीडियां उनतक पहुँचती थी वोह अब ऊपर नहीं जाती,
मकान की उपरी मंजिल पे अब कोई नहीं रहता|
वहां कमरों में इतना याद है मुझको खिलौने,
एक पुराणी टोकरी में भर के रखे थे,
बहुत से तो उठाने,फेकने,रखने में चूर हो गए|
वहां एक बालकनी भी थी जहाँ एक बेत का झुला लटकता था,
मेरा एक दोस्त था वो तोता,वो रोज आता था,उसको हरी मिर्च खिलाता था,
उसी के सामने एक छत थी
जहाँ एक मोर बैठा आसमा पे रात भर मीठे सितारे चुबता रहता था |
मेरे बच्चों ने वो देखा नहीं वो निचे की मंजिल पर रहते हैं
जहाँ पर पिआनो रखा है,
पुरानी पारसी स्टाइल का फ्रेज़र से ख़रीदा था,
मगर कुछ बेसुरी आवाजें करता है,
के उसकी रित्जस सारी हिल गयी हैं,
के सुरों पर दुसरे सुर चढ़ गए हैं |
उसी मंजिल पर एक पुश्तैनी बैठक थी
जहाँ पुरखों की तस्वीरें लटकती रहती थीं,
मैं सीधा करता रहता था हवा फिर टेढ़ा कर जाती|
बहु को मूछों वाले सारे पुरखे क्लीशे लगते थे,
मेरे बचों ने आखिर उन्हें कीलों से उतरा
पुराने न्यूज़ पेपर मैं उन्हें महफूज़ करके रख दिया था,
मेरा एक भांजा ले जाता है फिल्मों मैं कभी सेट पर लगता है,
किराया मिलता है उनसे |
मेरी एक मंजिल पे मेरे सामने एक मेहमान खाना है
मेरे पोते कभी अमेरिका से आयें तो रुकते हैं,
अलग साइज़ मैं आते है वो जितनी बार आते है,
खुदा जाने वो ही आते हैं या हर बार कोई दूसरा और आता है|
वोह एक कमरा,जो पीछे की तरफ से बंद है जहाँ बत्ती नहीं जलती,
वहां एक रोसरी रखी है, वोह उससे मेहेकता है |
वहां वो दाई रहती थी के जिसने तीन बच्चों को बड़ा करने मैं अपनी उम्र दे दी थी,
मरी तोह मैंने दफनाया नहीं महफूज़ करके रख दिया उसको |
अब उसके बाद एक दो सीढियां है नीचे तहखाने मैं जाती हैं ,
जहाँ ख़ामोशी रोशन है,सुकून सोया हुआ है बस इतनी सी पहलू में जगह रखकर,
कि जब सीढियों से नीचे आऊं तोह उसी के पहलु में बाजु पे सर रखकर गले लग जाऊं,
सो जाऊं |
- गुलज़ार
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