डूब कर ही हम बेहतर जान पाए
इन डूबती शामों में होती कैसी उलझन है
सच है,कभी कभी उदास होता ये मन है
बनते काम भी आज बिगड़ रहे हैं
खुदा जाने कैसी अड़चन है
सच है, कभी कभी उदास होता ये मन है
कहीं तो हो ठौर ठिकाना सकूँ का
ना अपनी ज़मीं है ना अपना गगन है
सच है कभी कभी उदास होता ये मन है
किसको पड़ी है कौन तुझे पूछे है "रोज़"
सभी अपनी अपनी दुनिया में मगन हैं
सच है कभी कभी उदास होता ये मन है
- सुमन पाठक
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