प्रस्तुत रचना एक ग़ज़ल है जिसके रचनाकार विवेक कुमार पाठक ’अंजान’ हैं। वर्ष १९६८ में संस्कारधानी जबलपुर (म.प्र.) में जन्मे विवेक कुमार पाठक ने जबलपुर विश्वविद्यालय से वाणिज्य स्नातक एवं हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। वर्ष १९८५ से रक्षा मंत्रालय के एक विभाग आयुध निर्माणी खमरिया से अपनी कर्म यात्रा प्रारंभ की।विभागीय राजभाषा प्रतियोगिताओं से साहित्य यात्रा का आगाज़ हुआ और तब से आज तक अनवरत रूप से जारी है। कई राष्ट्रीय कवि सम्मलेन मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।वर्तमान में आयुध निर्माणी भंडार में कार्यरत हैं एवं अंतरजाल के माध्यम से साहित्य आराधना का यह प्रथम प्रयास है।अपनी लेखनी से गीत, गज़ल, नईकविताएवंअकविता सभी विधाओं में सृजन का प्रयास किया है।इनकी हेरिटेज पर यह प्रथमप्रकाशित रचना है।
बेबसी की हम नई तस्वीर हैं ,
हम तूफानों में फंसी तकदीर हैं
गुलशनों को फूंकते हैं नौजवां,
मालियों के सूखते अब नीर हैं
बन गया मैं एक दिल टूटा हुआ,
लोग मुझको जोडते हर पीर हैं
एक था घर कई घरों में बंट गया,
बीबियाँ घर की गज़ब शमशीर हैं
रांझे को चीलें उठा के ले गईं ,
काफिरों संग घूमती अब हीर हैं
अब कहाँ मिलते फंसाने प्रीत के,
हर तरफ अब फत्ते ईर बीर हैं ॥
बेबसी की हम नई तस्वीर हैं ,
हम तूफानों में फंसी तकदीर हैं
गुलशनों को फूंकते हैं नौजवां,
मालियों के सूखते अब नीर हैं
बन गया मैं एक दिल टूटा हुआ,
लोग मुझको जोडते हर पीर हैं
एक था घर कई घरों में बंट गया,
बीबियाँ घर की गज़ब शमशीर हैं
रांझे को चीलें उठा के ले गईं ,
काफिरों संग घूमती अब हीर हैं
अब कहाँ मिलते फंसाने प्रीत के,
हर तरफ अब फत्ते ईर बीर हैं ॥
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