न मैं हँसी, न मैं रोई
बीच चौराहे जा खड़ी होई
न मैं रूठी, न मैं मानी
अपनी चुप से बांधी फाँसी
ये धागा कैसा मैंने काता
न इसने बांधा न इसने उड़ाया
ये सुई कैसी मैंने चुभोई
न इसने सिली न उधेड़ी
ये करवट कैसी मैंने ली
साँस रुकी अब रुकी
ये मैंने कैसी सीवन छेड़ी
आँतें खुल-खुल बाहर आईं
जब न लिखा गया न बूझा
टंगड़ी दे खुद को क्यों दबोचा
ये दुख कैसा मैने पाला
इसमें अंधेरा न उजाला
- गगन गिल
बीच चौराहे जा खड़ी होई
न मैं रूठी, न मैं मानी
अपनी चुप से बांधी फाँसी
ये धागा कैसा मैंने काता
न इसने बांधा न इसने उड़ाया
ये सुई कैसी मैंने चुभोई
न इसने सिली न उधेड़ी
ये करवट कैसी मैंने ली
साँस रुकी अब रुकी
ये मैंने कैसी सीवन छेड़ी
आँतें खुल-खुल बाहर आईं
जब न लिखा गया न बूझा
टंगड़ी दे खुद को क्यों दबोचा
ये दुख कैसा मैने पाला
इसमें अंधेरा न उजाला
- गगन गिल
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