महाश्वेता देवी जी की एक बहुत अच्छी कविता
***
आ गए तुम ?
द्वार खुला है अंदर आ जाओ
पर ज़रा ठहरो
दहलीज़ पर पड़े
पॉयदान पर
अपना अहम् झाड़ आना
मधु मालती लिपटी है
मुंडेर से
अपनी नाराज़गी
उस पर उंडेल आना
तुलसी के क्यारे में
मन की चटकन चढ़ा आना
अपनी व्यस्तताएँ
बाहर खूँटी पर टाँग आना
जूतों के साथ अपनी
हर नकारात्मकता
उतार आना
बाहर किलोलते बच्चों से
थोड़ी शरारत माँग लाना
गुलाब के साथ
उगी हैं मुस्कानें
तोड़ कर पहन आना
देखो
शाम बिछाई है मैंने
सूरज क्षितिज पर
बाँधा है
लाली छिड़की है नभ पर
प्रेम और विश्वास की
मद्धम आँच पर
चाय चढ़ाई है
घूँट-घूँट पीना
सुनो
इतना मुश्किल भी
नहीं है जीना ।
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आ गए तुम ?
द्वार खुला है अंदर आ जाओ
पर ज़रा ठहरो
दहलीज़ पर पड़े
पॉयदान पर
अपना अहम् झाड़ आना
मधु मालती लिपटी है
मुंडेर से
अपनी नाराज़गी
उस पर उंडेल आना
तुलसी के क्यारे में
मन की चटकन चढ़ा आना
अपनी व्यस्तताएँ
बाहर खूँटी पर टाँग आना
जूतों के साथ अपनी
हर नकारात्मकता
उतार आना
बाहर किलोलते बच्चों से
थोड़ी शरारत माँग लाना
गुलाब के साथ
उगी हैं मुस्कानें
तोड़ कर पहन आना
देखो
शाम बिछाई है मैंने
सूरज क्षितिज पर
बाँधा है
लाली छिड़की है नभ पर
प्रेम और विश्वास की
मद्धम आँच पर
चाय चढ़ाई है
घूँट-घूँट पीना
सुनो
इतना मुश्किल भी
नहीं है जीना ।