Monday, March 7, 2016

सबके सब भीतर थे तब !

हमारे भीतर होता था खिलखिलाता मन
मन के बहुत भीतर सबसे बतियाता घर

घर के भीतर उजियर-उजियर गाँव
गाँव के भीतर मदमाते खेत

खेत के भीतर बीज को समझाती माटी
माटी के भीतर सुस्ताते मज़ूर और सिर-पाँव

पाँव के भीतर सरसों, गेहूँ, धान की बालियाँ
बालियों के भीतर रंभाती गाय

गाय के भीतर हंकड़ते बछड़े
बछड़े के भीतर कम-से-कम एक जोड़ी बैल

बैल के भीतर हरी-भरी घास
घास के भीतर मोती-सी चमकती ओस

ओस के भीतर जीवन का पानी
पानी के भीतर घड़ा, कौआ, कंकड़ की कहानी

कहानी के भीतर हम सबका मन
मन के भीतर अब्बा, अम्मा, दादी, पड़ोस

पड़ोस के भीतर लकरी, नमक, आग, संतोष
इन सबके बहुत भीतर जीवन का जोश

सबके सब भीतर थे जब
सबका बाहर भीतर था तब

अब सब बाहर-ही-बाहर
कहाँ से भरे गागर में सागर ?


प्रस्तुति - जयप्रकाश मानस

No comments:

Post a Comment