सब कुछ ठीक नहीं है
इस तथ्य की उपेक्षा कर
यथा संभव जीते ही जाना,
आज के वक़्त में
इतना भी काफी है।
सड़क जाम में एम्बुलेंस
जीवन मृत्यु का संघर्ष
छटपटाता हुआ शासन-तंत्र
हालत मात्र गंभीर
इतना भी काफी है।
जूठे बर्तन, ईंट-बालू, धुआं
इनमें सना देश का भविष्य,
संविधान भी प्रावधान है
बाल श्रम निषेध
इतना ही काफी है।
अपने मूर्ति रूप में आराध्य
अनेकों "राधा-कृष्ण" की लाशें,
उन्ही मोहल्लों में दोबारा
प्रेम पनपा है
इतना ही काफी है।
मित्रता - प्रतियोगिता का द्वंद्व
वासना का बेईमानी से षणयंत्र,
चंद टुकड़े बेईमानी ही सही
जीवन सफल है
इतना ही काफी है।
- स्मिता पाण्डेय
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