इनको भी, उनको भी, उनको भी !
तुमसे क्या झगड़ा है
हमने तो रगड़ा है--
इनको भी, उनको भी, उनको भी !
दोस्त है, दुश्मन है
ख़ास है, कामन है
छाँटो भी, मीजो भी, धुनको भी
लँगड़ा सवार क्या
बनना अचार क्या
सनको भी, अकड़ो भी, तुनको भी
चुप-चुप तो मौत है
पीप है, कठौत है
बमको भी, खाँसो भी, खुनको भी
तुमसे क्या झगड़ा है
हमने तो रगड़ा है
इनको भी, उनको भी, उनको भी !
- नागार्जुन
(1978 में रचित)
वाह पढ़ कर मजा आ गया ... बहुत बहुत आभार आपका
ReplyDeleterecent poem : मायने बदल गऐ