तुम्हारी खूबसूरती में चार चाँद लग जाते हैं -
जब तुम नहा के जुल्फे झटकते हुए खिड़की पे आती हो ,
मै बेखबर सा निहारता हूँ -
उस चाँद से सलोने चेहरे को .
एक पल के लिए भूल जाता हूँ सब कुछ ,
ऐसा लगता है जैसे सुबह- ऒस की
नन्ही - नन्ही बूंदों से नहा के निकली हो ,
जब तुम सरमा के मुझे देखती हो ,
और नजरे झुका कर मुस्करा के जाने लगती हो,
दिल सिहर सा उठता है ,
रोम रोम में आग सी लगती है ,
तुम्हारे उस सरमाने को क्या कहूँ ,
जैसे चाँद शरमा के बादल में छुपता हो ,
दिल एक बार फिर से बेचैन होता है तुम्हे देखने के लिए ,
अंतर्मन में एक तस्वीर -हमेशा छुपा रखी है मैंने तुम्हारी ,
दिन भर में ना जाने कितनी बार
उस खिड़की की तरफ देखता हूँ -
वो सूनी खिड़की भी अच्छी लगती है .
कम से कम तुम्हारे आने का आस तो दिलाती है ,
फिर तुम्हारा इंतजार ऐसे करता हूँ
जैसे कोई उल्लू रात के आने का इंतजार करता हो ,
और शाम को जब तुम आती हो
आँखों से आँखे मिलाती हो ,
दिल जैसे कह उठता है तुम्हारा ही इंतजार था ,
अब आये हो कभी मत जाना ,
भले ही थोड़े दूर हो , पास आना ,
और इस पागल को अपना बनाना .....................
-वीरेश मिश्र
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