कभी देखा है खुले आसमान को ?
कभी कोशिश की है उसको बाँहों में भरने की ?
कभी चाहा है उसके जैसा बनने की ,
कभी कोशिश की है ?
कभी देखा है सतरंगी बादलों को ?
कभी बादलों में बनाया है कोई पेड़ ?
कभी देखा है कोई परवाज नीले श्वेत बादलों में ?
कभी देखा है सावन के काले बादलों को ?
कभी देखा है गिरती हुई बूंदों को ?
कभी भीगा है पागलो की तरह उनमे ?
कभी देखा है ?
कभी देखा है सतरंगी धनुक को ?
कभी देखा है शफ़क़ को डालियों के सोकों से आते हुए ?
कभी कोशिश की है उनको पकड़ने की ?
कभी कोशिश की है तितलियों से खेलने की ?
कभी पंछियों से बातें की है ?
कभी अपनी ही परछाई को छोटा बड़ा किया है ?
कभी मिटटी के घरौंदे बनाये हैं ?
कभी खुद को समझा है ????
कभी कोशिश की है ?
कभी कोशिश की है ? ................
-वीरेश मिश्र
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