जीवन की आपा धापी में ,
अपना ही जीवन जीना भूल गयी |
कभी बेटी,बहन कभी पत्नी ,माँ बन जिया ,
अपने ही जीवन को तूल देना भूल गयी |
जीवन में अपनी कोई कद्र नहीं ,
समाज कहता है हम नहीं स्वतन्त्र कभी |
वसूलों की जंजीरों में जकड़ी ,
जीवन यापन मैं कर रही |
खुशियाँ सारी दूजो पर लुटा ,
गम को अपने सीने से लगा |
खामियों को अपने सर-माथे पर सजा ,
सुखों का दे दूजों को मजा ,
जीवन यापन ही कर रही ,
जीवन के झंझावतों को सह चुप ही रह रही |
||सविता मिश्रा||
नारी !
ReplyDeleteजीवन की आपा धापी में ,
अपना ही जीवन जीना भूल गयी |
कभी बेटी,बहन कभी पत्नी ,माँ बन जिया ,
अपने ही जीवन को तूल देना भूल गयी |
जीवन में अपनी कोई कद्र नहीं ,
समाज कहता है हम नहीं स्वतन्त्र कभी |
वसूलों की जंजीरों में जकड़ी ,उसूलों की ज़िन्दगी में जकड़ी ,.........
जीवन यापन मैं कर रही |
खुशियाँ सारी दूजो पर लुटा ,
गम को अपने सीने से लगा |
खामियों को अपने सर-माथे पर सजा ,
सुखों का दे दूजों को मजा ,
जीवन यापन ही कर रही ,
जीवन के झंझावतों को सह चुप ही रह रही |