श्रृंगार के सभी सामान चढ़ावे के लिए रखे जाते हैं। शालिग्राम को दोनों
हाथों में लेकर यजमान लड़के के रूप में यानी भगवान विष्णु के रूप में और
यजमान की पत्नी तुलसी के पौधे को दोनों हाथों में लेकर अग्नि के फेरे लेते
हैं। विवाह के पश्चात प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है। कार्तिक मास में
स्नान करने वाले स्त्रियाँ भी कार्तिक शुक्ल एकादशी को शालिग्राम और तुलसी
का विवाह रचाती है। समस्त विधि विधान पूर्वक गाजे बाजे के साथ एक सुन्दर
मण्डप के नीचे यह कार्य सम्पन्न होता है विवाह के स्त्रियाँ गीत तथा भजन
गाती है ।
मगन भई तुलसी राम गुन गाइके मगन भई तुलसी।
सब कोऊ चली डोली पालकी रथ जुडवाये के।।
साधु चले पाँय पैया, चीटी सो बचाई के।
मगन भई तुलसी राम गुन गाइके।।
सब कोऊ चली डोली पालकी रथ जुडवाये के।।
साधु चले पाँय पैया, चीटी सो बचाई के।
मगन भई तुलसी राम गुन गाइके।।
:: तुलसी विवाह कथा ::
प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ़ बड़ा उत्पात मचा रखा
था। वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी
वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वजंयी बना हुआ था। जालंधर
के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गये तथा रक्षा की गुहार
लगाई। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग
करने का निश्चय किया। उधर, उसका पति जालंधर, जो देवताओं से युद्ध कर रहा
था, वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया। जब वृंदा को इस बात का पता लगा
तो क्रोधित होकर उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया, 'जिस प्रकार तुमने छल
से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम भी अपनी स्त्री का छलपूर्वक हरण
होने पर स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्यु लोक में जन्म लोगे।' यह कहकर
वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। जिस जगह वह सती हुई वहाँ तुलसी का पौधा
उत्पन्न हुआ। एक अन्य प्रसंग के अनुसार वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया
था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। विष्णु
बोले, 'हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे
साथ ही रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को
प्राप्त होगा।' बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी
मानी जाती है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के
विवाह का प्रतीकात्मक विवाह है।
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