वीर सदा हंस कर पलता हैं ,
असि पर और शरों पर,
जिसकी गाथा खेला करती ,
सदा जगत अधरों पर ।
वीरत्व सदा जाना जाता हैं ,
अपने तेज प्रखर से ...
साहस रखता जो तोड़ सितारे
ले आने का अम्बर से ।
सच हैं , वीरता ही रख सकती
हैं विजय की चाह ...
पर हैं सच्चा वीर सदा
जो चले धर्म की राह ।
वही विजय हैं पूज्य की जिसमे
निहित भुजा का बल हो ...
नहीं कोई भी कपट न कोई
लेश मात्र भी छल हो ।
- विजय शुक्ला
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