अम्मा
मेरी हर वो जिद नाकाम ही रही
जो तुम्हारे बिना सोने जागने उगने डूबने
बुनने बनाने बड़े होने या....
सब कुछ हो जाने की थी
अब जैसे के तुम नहीं हो कहीं नहीं हो
कुछ नहीं हो पाता तुम्हारे बगैर
नींदों में सपनो का आना जाना
जागते हुवे नयी आफत को न्योता देना
चुनौतियों को ललकारना
अब मुनासिब नहीं ....डॉ सुधा उपाध्याय
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