आवो सुलह कर लें ,गहरी साँसे भर लें
आवो मिलकर किताबों से धुल झाडें
चलो फिर से आईने को मुंह चिढ़ाएं...
रेल की पटरी पर दौड़ें बेतहाशा
अपना अपना फटा झोला सिल लें
पुरानी चुन्नियों का झूला बनायें
गौरैये के बच्चे से बतियाएं
चलो न बूढी अम्मा को सताएं ....हाय
मन को मुक्त करने वाले उन सारे बंधनों में
फिर से जकड जाएँ ...हाय आवो न सुलह कर लें ...डॉ सुधा उपाध्याय
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